ध्र्ुव पराक्र्मी

मैं और मेरी कहानी ....


िमतवा

मैने कभी अलिवदा नहीँ कहना के बारे मे यहाँ िळखा था ।

उस वक्त मुझे ये िपक्च्र बहुत पकाउ लगी थी ।

पर आज मै इस का एक गाना सुन रहा था - िमतवा - िजसके बोल और लय मुझे छू गए ।





मेरे मन ये बता दे तू, किस ओर चला हैं तू
क्या पाया नहीं तूने, क्या ढ़ूँढ़ रहा हैं तू
जो हैं अनकही, जो हैं अनसूनी, वो बात क्या हैं बता
मितवा, कहे धडकने तुझ से क्या
मितवा, ये खुद से तो ना तू छूपा

जीवन डगर में, प्रेमनगर में
आया नजर में जब से कोई हैं
तू सोचता हैं तू पूछता हैं
जिस की कमी थी क्या ये वो ही हैं, हाँ ये वो ही हैं
तू इक प्यासा और ये नदी हैं
काहे नहीं इस को तू खुल के बताए

तेरी निगाहें पा गई राहें
पर तू ये सोचे जाऊँ ना जाऊँ
ये जिंदगी जो हैं नाचती तो
क्यों बेडीयों में हैं तेरे पाँव
प्रीत की धून पर नाच ले पागल
उडता अगर हैं, तो उडने दे आँचल
काहे कोई अपने को ऐसे तरसाए

1 Responses to “िमतवा”

  1. # Anonymous बेनामी

    भइया आगे भी कुछ पोस्ट लिखोगे या नमस्ते इंडिया हो गया?  

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फ़िर कभी लिखूंगा (फुरसत में)


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